जापानी भाषा का सेंटर ऑफ़ एफ्रो-एशियाई लैंग्वेजेज(सीएएएल) में भाषा, साहित्य और संस्कृति अध्ययन के विद्यालय में 1973 में एक साल के प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम के रूप में शुरुआत की गयी थी, जो अगले साल पूर्णकालिक 5 साल के एकीकृत प्रोग्राम जो एमए डिग्री के लिए अग्रणी हुआ उसमें उन्नत किया गया| शीत युद्ध के समय के दौरान भारत और जापान में कोई ख़ास बातचीत नही होती थी, चाहे वो द्विपक्षीय आर्थिक सहयोग का दायरा हो,व्यापर या वाणिज्य या प्रौद्योगिकी अदला बदली के क्षेत्र में, औद्योगिक सहयोग में| पर 1980 के दशक के शुरुआत में इंडो-जापानी रिश्तों में अचानक से सुधार हुआ, खासतौर से द्विपक्षीय व्यापार और प्रौद्योगिकी ट्रान्सफर के क्षेत्र में, जिससे जापानी भाषा के विशेषज्ञों की मांग में उछाल आया जो धीरे धीरे बढ़ ही रहा है| 2012 में,दोनों देशों ने भरा और जापान के बीच राजनयिक सम्बन्धों की 60वीं सालगिरह का जश्न मनाया और रणनीतिक और वैश्विक साझेदारी को मजबूती प्रदान करने की नई अवस्था में प्रवेश किया| यह जापानी भाषा के विशेषज्ञों के साथ ही साथ जापानी साहित्य,संस्कृति, समाज,धर्म आदि के शोधकर्ताओं और विद्वानों की मांग को और बढ़ा देगा| ये वे क्षेत्र हैं जिनमें केंद्र ने राष्ट्रीय के साथ अंतर्राष्ट्रीय मंडल में शरण बनाई है| केंद्र एम.फिल/पी.एचडी प्रोग्राम भी पेश करता है| केंद्र में एम.फिल/पी.एचडी 2006 में शुरू हुआ जिसने मौजूदा प्री-पी.एचडी/पी.एचडी की जगह ली|
1970 के दशक के मध्य में सीएएएल के प्रारम्भिक केंद्र को द्विभाजित किया गया और सेंटर ऑफ़ पूर्वी एशियाई लैंग्वेजेज(सीईएएल) जिसमें चाईनीज़, जापानी और कोरियाई भाषा थे, वजूद में आया| हालांकि, सीईएएल आगे फिर द्विभाजित हुआ और सेंटर फॉर जापानीज एंड उत्तरी पूर्वी एशियाई स्टडीज(सीजेएनईएएस) 1995 में वजूद में आया, जिसमें जापानी, कोरियाई और मंगोलियन भाषाएँ थीं| इसके अलावा, कार्यकारी परिषद की बैठक में जो 05.5.2013 को हुई थी उसमें सीजेकेएनईएएस फिर से दो स्वतंत्र केन्द्रों में द्विभाजित हुआ, अर्थात, सेंटर फॉर जापानीज स्टडीज(सीजेएस) और सेंटर फॉर कोरियाई स्टडीज(सीकेएस)| सीजेएस में करीब 200 विद्यार्थी हैं|